Saghar Siddiqui
Born: Muhammad Akhtar
1928, Ambala, Punjab, British India
Died: 19 July 1974 (aged 45-46) Lahore, Punjab, Pakistan
Pen name: Saghar
Occupation: poet in both Urdu and Punjabi languages
Nationality:Pakistani
Genre: Ghazal, Nazm, Free verse
ये जो दीवाने से दो-चार नज़र आते हैं
इन में कुछ साहिब-ए-असरार नज़र आते हैं
तेरी महफ़िल का भरम रखते हैं सो जाते हैं
वर्ना ये लोग तो बेदार नज़र आते हैं
दूर तक कोई सितारा है न कोई जुगनू
मर्ग-ए-उम्मीद के आसार नज़र आते हैं
मिरे दामन में शरारों के सिवा कुछ भी नहीं
आप फूलों के ख़रीदार नज़र आते हैं
कल जिन्हें छू नहीं सकती थी फ़रिश्तों की नज़र
आज वो रौनक़-ए-बाज़ार नज़र आते हैं
हश्र में कौन गवाही मिरी देगा 'साग़र'
सब तुम्हारे ही तरफ़-दार नज़र आते हैं
साहिब-ए-असरार= Man of secrets
बेदार= Awake, vigilant, जागना
शरारों=Spark
मर्ग-ए-उम्मीद= Death of hope
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