wo chup ho gae mujhe kya kehte kehte Ghazal | Hasrat Mohani

wo chup ho gae mujhe kya kehte kehte Ghazal

HASRAT MOHANI:

मौलाना हसरत मोहानी मसऊदी



(1 जनवरी 1875-1 मई 1951) साहित्यकारस्वतंत्रता सेनानीशायरपत्रकारइस्लामी विद्वानसमाजसेवक और आज़ादी के सिपाही थे। ‘ इंक़िलाब ज़िन्दाबाद ' का नारा दिया।  कृष्ण भक्त , अपनी ग़ज़ल ' चुपके चुपकेरात दिन आँसू बहाना याद है ' के लिए प्रसिद्ध


wo chup ho gaye mujhe kya kehte kehte Ghazal
वो चुप हो गए मुझ से क्या कहते कहते
कि दिल रह गया मुद्दआ कहते कहते


 मिरा इश्क़ भी ख़ुद-ग़रज़ हो चला है
तिरे हुस्न को बेवफ़ा कहते कहते

 शब--ग़म किस आराम से सो गए हैं
फ़साना तिरी याद का कहते कहते

 ये क्या पड़ गई ख़ू--दुश्नाम तुम को
मुझे ना-सज़ा बरमला कहते कहते

 ख़बर उन को अब तक नहीं मर मिटे हम
दिल--ज़ार का माजरा कहते कहते

अजब क्या जो है बद-गुमाँ सब से वाइज़
बुरा सुनते सुनते बुरा कहते कहते

वो आए मगर आए किस वक़्त 'हसरत'
कि हम चल बसे मरहबा कहते कहते


शब--ग़म= ग़म/दुख की रात, the night of sorrow
ख़ू--दुश्नाम= habit of abuse
ना-सज़ा=improper
बरमला=openly, publicly, खुल्लमखुल्ला, सामने, मुँह पर
दिल--ज़ार=Afflicted Heart
बद-गुमाँ= distrustful, suspicious
वाइज़=preacher, adviser, religious wise man, learned man
मर्हबा=hail, bravo, साधु,शाबाश, बहुत खूब, धन्य

TAGS: Hasrat Mohani, wo chup ho gaye mujhe kya kehte kehte













Comments