Mir Taki Mir:
जन्म: १७२३, आगरा
मृत्यु : १८१०
(आयु ८७), लखनऊ
उपनाम: मीर
व्यवसाय: उर्दू
शायर
राष्ट्रीयता: भारतीय
अवधि/काल: मुग़ल काल
विधा: ग़ज़ल
विषय: इश्क़,
दर्शन
Patta Patta Boota Boota Haal Hamara Jaane Hai Ghazal
पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है
जाने न जाने गुल ही न जाने बाग़ तो सारा जाने है
लगने न दे बस हो तो उस के गौहर-ए-गोश को बाले तक
उस को फ़लक चश्म-मह-ओ-ख़ुर की पुतली का तारा जाने है
आगे उस मुतकब्बिर के हम ख़ुदा ख़ुदा किया करते हैं
कब मौजूद ख़ुदा को वो मग़रूर-ए-ख़ुद-आरा जाने है
आशिक़ सा तो सादा कोई और न होगा दुनिया में
जी के ज़ियाँ को इश्क़ में उस के अपना वारा जाने है
चारागरी बीमारी-ए-दिल की रस्म-ए-शहर-ए-हुस्न नहीं
वर्ना दिलबर-ए-नादाँ भी इस दर्द का चारा जाने है
क्या ही शिकार-फ़रेबी पर मग़रूर है वो सय्याद बचा
ताइर उड़ते हवा में सारे अपने असारा जाने है
मेहर ओ वफ़ा ओ लुत्फ़-ओ-इनायत एक से वाक़िफ़ इन में नहीं
और तो सब कुछ तंज़ ओ किनाया रम्ज़ ओ इशारा जाने है
क्या क्या फ़ित्ने सर पर उस के लाता है माशूक़ अपना
जिस बे-दिल बे-ताब-ओ-तवाँ को इश्क़ का मारा जाने है
रख़नों से दीवार-ए-चमन के मुँह को ले है छुपा यानी
इन सुराख़ों के टुक रहने को सौ का नज़ारा जाने है
तिश्ना-ए-ख़ूँ है अपना कितना 'मीर' भी नादाँ तल्ख़ी-कश
दुम-दार आब-ए-तेग़ को उस के आब-ए-गवारा जाने है
गौहर-ए-गोश= gem, pearl in ear
ring
चश्म-मह-ओ-ख़ुर= eyes of the moon and sun
मुतकब्बिर= proud, arrogant, haughty, अहंकारी, अभिमानी, घमंडी, मयूर।
मग़रूर-ए-ख़ुद-आरा= proud, self-revealing
रस्म-ए-शहर-ए-हुस्न= tradition of the city of beauty
दिलबर-ए-नादाँ= simple lover
शिकार-फ़रेबी= hunted by deception
मेहर= Sun/ affection/ kindness, मोहब्बत
लुत्फ़-ओ-इनायत= kindness and reward
तंज़ = kindness and reward
किनाया= hint, riddle, metaphor, sign
रस्म-ए-शहर-ए-हुस्न = tradition of the city of beauty
रम्ज़= hidden meaning, hint, secret, signal, संकेत, इशारा, रहस्य, भेद, राज़ ।।
बे-ताब-ओ-तवाँ= restless and strong
तिश्ना-ए-ख़ूँ= blood thirsty
तल्ख़ी-कश = bitter
आब-ए-तेग़= sharpness of sword,
तलवार की काट/तेज़ी/चमक
आब-ए-गवारा= pleasing water
Nice post..
ReplyDeletethanks
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