दीवान-ए -ग़ालिब Part 1
दीवाने -ए -ग़ालिब का यह हिंदी रूपांतरण काव्य प्रेमी पाठको के सामने प्रस्तुत करने जा रहा हूँयह मिर्ज़ा ग़ालिब के उस उर्दू काव्य का संग्रह है.
जज्ब -ए -बेइख्तियार -इ -शोक देखा चाहिए
सीन -ए -शमशीर से बाहर है दम शमशीर का
मुझे शहीद होने का इस कदर शौक है कि वह जज्बा मेरे काबू से बाहर चला है और मेरे शौक को इस कदर बेताब देख कर मुझे कत्ल करने वाली तलवार भी उसी तरह बेकरार है जैसे उस का दम उस के सोने के बाहर आ निकला हो.
जूज कैस और कोई न आया वरु -ए -कार ,
सहरा , मगर वतनगी -ए -चश्मे हुसूद था
दुनिया में मजनू के बाद और किसी आशिक को इश्क़ मैं जान गवाने पर इतना रूतबा नहीं मिला , जितना मजनू को इस की वजह यह है कि उस का मरण स्थल भी वही था. वह इस तरह का आशिक़ था की अपनी मौत के बाद यह नहीं चाहता था कि कोई दूसरा मजनू पैदा हो , क्योकि सहरा को मजनू से प्रेम है
जूज=सिवा
कैस =मजनू
वरु -ए -कार= काम आना , मुक़ाबले मैं आना
सहरा = जंगल , वह जगह जहा मजनू की जान गई थी
हसूद = हमद की तग नजरी
आशुफ्तगी ने नक़्शे सुवैदा किया दुरुस्त
जाहिर हुआ कि दाग़ का सरमाया दूद था
आशिक परेशान रहने लगा और इसी परेशानी तथा बेचैनी मैं वह सर्द आहे भरने लगा। नतीजा यह हुआ की आशिक़ के दिल पर काला दाग़ पड गया. साबित यह हुआ कि आशिक के दिल का दाग धूआ था , परेशानी नहीं , क्योकि धूए की वजह से ही काला निशान पड़ा था
आशुफ्तगी=परेशानी
सुवैदा = काला तिल, दिल का काला दाग
दूद = धूआ
था ख्वाब में ख्याल को तुझ से मुआमला
जब आँख खुल गई न जियाँ था न सूद था
जब हम सपनो की दुनिया मैं थे तो तुझसे प्यार और मुहब्बत की बाते कर रहे थे और अनिश्चित हो रहे थे। अब जब आँख खुली और में होश में आया तो न कोई फायदा था न नुकसान यानी न वह प्यार की बाते रही और न तुझे ही अपने सामने पाया
जिया = नुकसान
सूद = फायदा
ढापा कफ़न ने दागे अयूबे वरहनगी
मैं वरन: हर लिवास में नगे वजूद था
मेरी मीत ने मेरे मरने के बाद मेरे गुनाहो पर परदा डाल दिया और इस तरह मुझे बदनाम होने से बचा लिया. वरना मैं एक बहुत बूरा इन्सान था. बदनाम और पापी था
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